Header Ads Widget

Baitha Hu Akela

::Anjan 15::


बैठा हु अकेला में,

उड़ते पक्षी ओके  किलकिलाहट मेने सुने, 

सब अपने घोसले की और  बड़  रहे थे,

शाम होने को हे पर शहर दौड़ता  दिखे,

उसके साथ ही लोग भी भागते  दिखे,

किसी के चहेरे पर हसी दिखी तो, 

किसी के चहेरे पे उदासी  दिखी, 

अपने घर लौटते जेब चेक करते दिखे, 

तो कोई खाना दे उसकी राह में,  

 मेंने बैठे रोड के किनारे लोग दिखे, 

दिलकश कहानी इस शहर की है, 

पर क्यों में शांत बैठा हु,  

देखा तो में भी अकेला बैठा हु, 

साथ वैसे भी नहीं कोई मेरे, 

अक्सर ऐसा महसूस किया मेने, 

अब क्या ही बताये 

ठोकरे खायी है बस अब हार मान चूका हु में।  


लेखक 

हर्ष राठोड 



Post a Comment

0 Comments